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क्या है काल सर्प योग

शास्त्रों मे राहु केतु को  सर्प माना गया है । सर्प का मुख राहु तथा पूंछ को केतु कहा गया है ।  मनुष्‍य का जब जन्‍म  होता है तब पूर्व जन्‍मो के कर्मो अर्थात प्रारब्‍ध के अनुसार ही जन्‍म कुंडली मे अलग-अलग भावो मे नवग्रह बैठते है एवं अलग-अलग ग्रहो के साथ संयोग बनाते है, उसी को योग कहते है । योग शुभ तथा अशुभ दोनो प्रकार के होते है जैसे- कालसर्प योग, राहू-चन्‍द्र या राहू-सूर्य का ग्रहण योग, राहू-मंगल का अंगारक योग, राहू-गुरू का चाण्‍डाल योग, विष योग, केन्‍द्रुम योग, दरीद्र द्योग आदि श्रापित तथा अशुभ योग कुंंडली मे पाये जाते है । उसी प्रकार गुरू-चन्‍द्र का गजकेसरी योग, लक्ष्‍मी योग, राजयोग, दीर्घायु योग, मालव्‍य योग, भास्‍कर योग, इन्‍द्रयोग, भद्रयोग हंस योग, रूचक योग आदि शुभ योग होने पर भी जातक कष्‍ट पाता है तथा साधारण जीवन व्‍यतित करता है, क्‍यों कि उपरोक्‍त अशुभ योगो के कारण ऐसा होता है । जब जन्‍म कुंडली मे सातो ग्रह ( सूर्य, चन्‍द्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र, शनि ) राहू तथा केतु के मध्‍य आ जाते है तो कुंडली मे काल सर्प योग का निर्माण होता है । कुंडली मे 144 प्रकार के कालसर्प योग बनते है किन्‍तु प्रमुख रूप से 12 प्रकार के कालसर्प योग कुडली मे बनते है जो इस प्रकार है –

1- अनंत नामक जब राहू लग्‍न मे तथा केतु सप्‍तम भाव मे हो और उनके मध्‍य समस्‍त ग्रह हो तो अनंत      नामककालसर्प योग होता है ।

2-कर्कोटक नामक- राहू द्वितीय भाव मे तथा केतु अष्‍टम भाव मे हो और सारे ग्रह इनके बीच मे हो तो कर्कोटक नामक कालसर्प योग होता है ।

3-वासुकी- कुंडली के त़‍़तीय भाव मे राहू तथा नवम भाव मे केतु हो और उनके मध्‍य समस्‍त ग्रह हो तो वासुकी कालसर्प योग होता है ।

4-शंखपाल नामक- जब राहू चतुर्थभाव मे तथा केतु दशम भाव मे हो और उनके मध्‍य समस्‍त ग्रह हो तो शंखपाल नामक कालसर्प योग होता है ।

5-पद्म नामक पंचम भाव मे राहू तथा एकादश भाव मे केतु हो और सातो ग्रह इनके मध्‍य हो तो पदम नामक कालर्सप योग बनता है ।

6-पद्य नामक राहू खष्‍टम मे तथा केतु द्वादश मे हो और उनके मध्‍य समस्‍त ग्रह हो तो पद्य नामक कालसर्प योग होता है ।

7-तक्षक नामक- जब राहू सप्‍तम भाव मे तथा केतु लग्‍न भाव मे हो और उनके मध्‍य सातो ग्रह हो तो तक्षक नामक कालसर्प योग होता है ।

8-कुलिक नामक – राहू अष्‍टम मे तथा केतु द्वितीय भाव मे हो और उनके मध्‍य समस्‍त ग्रह हो तो कुलिक कालसर्प योग होता है ।

9-शंखनाद नामक- जब राहू नवम भाव मे तथा केतु त़तीय भाव मे हो और उनके मध्‍य समस्‍त ग्रह हो तो शंखनाद नामक कालसर्प योग होता है ।

10-पातक नामक- जब राहू दशम भाव मे तथा केतु चतुर्थ भाव मे हो और उनके मध्‍य सातो ग्रह हो तो पातक नामक कालसर्प योग होता है ।

11-शेषनाग- जब राहू द्वादश भाव मे तथा केतु षष्‍टम भाव मे हो और उनके मध्‍य सातो ग्रह हो तो शेषनाग नामक कालसर्प योग होता है ।

12- विषाक्‍त नामक- जब राहू ११ भाव मे तथा केतु ५ भाव मे हो और उनके मध्‍य सातो ग्रह हो तो विषाक्‍त  नामक कालसर्प योग होता है ।