मनुष्य के पूर्व जन्म के कर्मो के फल भी उसके साथ ही जुडे रहते हैं । एक कहावत प्रचलित है-’बाढे पूत बाप के धर्मा।’ अर्थात पिता द्वारा जो धर्म किया जाता है उसका लाभ पुत्र को मिलता है। तो स्वभाविक है कि यदि पिता अच्छा कर्म करेंगे तो उसका अच्छा फल पुत्र भोगेगा और यदि पिता बुरा कर्म करेगा तो बुरे कार्य का फल उसकी संतान भोगेगी । या युं कहें कि पिता का कर्ज उसके बेटे को चुकाने का फर्ज है तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी । कोई भी इंसान मात्र अपने कर्मो का फल नही भोगता वह अपने पिता या परिवार के कर्मो के फल को भोगता है । इसे इस प्रकार समझे कि एक धन्ना सेठ का लडका किसी दुकान पर जाकर बोले की मुझे अमुक वस्तु उधार चाहिए तो दुकानदार बिना किसी सवाल के उसे उधार दे देगा क्योंकि वह जानता है उसका पिता सेठ है और व्यवहारिक भी है, पैसा दे देगा । उस बन्दे ने अपने पिता के कर्मो को भुनाया है । किन्तु किसी अन्य का बेटा जाकर उधार मांगेगा तो वह मना कर देगा क्योंकि प्रथम तो उसकी हैसियत नही है चुकाने की, दूसरा वह व्यवहारिक नही है।
यदि हमारे पूर्वजो ने किसी प्रकार के अशुभ कार्य किये हों एवं अनैतिक रूप से धन संग्रह किया हो तो उसके अच्छे परिणाम आने वाली पीढियों को भी भोगना पडता है । साथ ही पैदा होने वाले जातक के भी कुछे ऐसे ही अशुभ कर्म होतें कि वे उन्ही पूर्वजो के यहां पैदा होते हैं । अतः पूर्व जन्म के कर्मो के फलस्वरूप आने वाली पीढियों पर पडने वाले अशुभ प्रभाव को ही पितृदोष या पितृ ऋण कहा जाता है । पितृदोष के कारण ही व्यक्ति की कुण्डली में कालसर्प योग बनता है और उसके परिवार में कई व्यक्तियों की कुण्डली में यह योग दिखाई देता है। इस योग के चलते व्यक्ति कभी सुखी नही होता, आर्थिक तंगी, तनाव, डिप्रेशन, हिनभावना, घर में कलह, आत्म विश्वास में कमी, विवाह में विलम्ब, संतान सुख में कमी, गृहस्थ सुख में कमी, शिक्षा में रूकावट, पेट दर्द, नशे की आदत, जुंआ-षट्टा , कोध, रोग का स्थाई हल न होना, पति-पत्नी में कलह, नपुंसकता, बनते कार्य बिगडना, कडी मेहनत के बाद भी सफलता नही मिलना, भाग्योदय में विलम्ब, भाग्य का साथ नही मिलता, व्यापार व्यवसाय में हानि, उन्माद, संशय,चिंता, नींद न आना पैतृक सम्पत्ती की हानि आदि परिलक्षीत होतें हैं ।
मित्रों पितृदोष का एक ताजा उदाहरण हाल ही में देखने को मिला जब दिल्ली के बुराडी में एक ही परिवार के 11 सदस्यों ने आत्महत्या कर ली । दिल्ली पुलिस को एक डायरी मिली जिसके मुताबिक परिवार के मुखीया भोपालसिंह की आत्मा अपने छोटे बेटे ललीत के अन्दर आने लगी । वह अपने पिता जैसी आवाज निकलाता था । उसने अपने कहे अनुसार चलने पर उनकी सारी समस्या और परेशानियों से निजात दिलाने की बात कही और हुआ भी वैसा, उसके कहे अनुसार चलने पर परिवार के सारी समस्याओं का निदान होने लगा । घर में खुशियां आने लगी । बहन की शादी नही हो रही थी वह अच्छे लडके और खानदान में तय हो गई । व्यवसाय दिन दुगना रात चैागुना होने लगा । परिवार उसका अंधभक्त होकर उसकी बातो पर आंखें बन्द कर विश्वास करने लगा । किन्तु मित्रों पितृ दोष होता है, पितृ योग नहीं । पिता के मन में कुछ और था वह अपने पूरे परिवार को अपने साथ ले जाना चाहता था, इसलिए उसने ललीत के माध्यम से परिवार के लोगो को एक बरगद जैसी तपस्या एक साधना करने के लिए प्रेरित किया जिसके करने के बाद पूरे परिवार को मुक्ति मिल जाएगी । मौत से मुक्ति, दुखो से मुक्ति, जिन्दगी खुशहाल हो जाएगी और पिता की बात का विश्वास कर 11 सदस्यों ने आत्महत्या कर ली । पुलिस की माने तो परिवार के किसी भी सदस्य का खुदकुशी करने का कोई ईरादा नही था ।
